मंथन
Wednesday, May 4, 2011
मन की बात
मैं क्या हूँ मैं नहीं जानता
जीवन की मैं खाक छानता
जीता हूँ इस निर्जन वन में
और पाने के पागलपन में
जितना पाऊँ कम लगता है
मन कुछ रीता सा लगता है
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