Wednesday, May 4, 2011

मन की बात

मैं क्या हूँ मैं नहीं जानता
जीवन की मैं खाक छानता
जीता हूँ इस निर्जन वन में
और पाने के पागलपन में
जितना पाऊँ कम लगता है
मन कुछ रीता सा लगता है

Saturday, January 22, 2011

तुलसी पर कुरबान

रामचरित मानस विमल, संतन जीवन प्रान |
हिंदुवान को वेद सम , जमनहि प्रगट क़ुरान ||

रहीम
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शुभ दिन लिए यह सावन का महीना आया ,
तब जाके मेरे हाथ में नगीना आया |
तुलसी पे आया जो लिखने का ख्याल ,
बड़ी देर ख्यालों को पसीना आया |
संसार को राम ने संवारा लेकिन ,
संसार के राम को संवारा तुमने |
जिस राम को वनवास दिया दशरथ ने ,
उस राम को घर-घर पहुंचा दिया तुमने |
दिल का इरादा तो है यहाँ तक पहुचूँ ,
अब अपनी पहुँच पर है जहाँ तक पहुचूँ |
तुलसी पे लिख के यहाँ तक पहुँचा,
श्री राम पे लिखूँ , तो कहाँ तक पहुचूँ ||

नज़ीर बनारसी

Sunday, January 2, 2011

Sultanpur bird sanctuary visit



नया साल

देखो नया साल है आया, सबने इसका जश्न मनाया
पर मेरे मन में बात ये आई, क्या जश्न मनाने का वक़्त है भाई
ईश्वर की सर्वोत्तम रचना कहते अपने को, नहीं अघाते
कितना स्वर्णिम अतीत है अपना, निशि दिन हैं ये राग सुनाते
सबसे बड़े लोकतंत्र की, देते हैं हम रोज दुहाई
बनेगे एक दिन विश्व शक्ति हम, कहकर फूले नहीं समाते
पर अपने अंदर झांक कर देखें, अपने आस पास भी देखें
देखें चौराहों पर भीख मांगते बच्चों को
देखें आत्महत्या करते हुए किसानों को 
देखें सत्ता के गलियारों में लुच्चों, चोर , दलालों  को
पशुओं का चारा खाने वालों को
ताबूत बेचने वालों को
धर्म  जाति के नाम पर हिंसा भड़काने वालों को
नाम शहीदों का लेकर जिन्होंने घर हैं बनबाये
common wealth के नाम पर अरबों हैं निपटाए
पर इन सबके लिये में इनको दोष नहीं दूंगा
इस चोरतंत्र में इससे ज्यादा इनसे, उम्मीद में क्या कर सकता हूँ
पर ये रोग मिटाने को, एक आह्वान तो कर सकता हूँ
परजीवी रहकर मेरे भाई, इतिहास नहीं बदले जाते
अपनी ताकत से लेकिन, पर्वत भी हैं  हिल जाते
जश्न के साथ हमें, कुछ और भी करना होगा
सर्वोत्तम रचना होने का, कुछ परिचय तो देना होगा
अपने समाज को हमको, नए तरीके से गढ़ना होगा
जब तक गाँव न होंगे समृद्ध, तब तक जश्न अधूरा होगा 
जब तक एक भी भूखा नंगा, तब तक काम अधूरा होगा
पहचानो ताकत को अपनी, और उसका उपयोग करो
ताकत वह है vote देने की, और सूचना के अधिकार की
कर्तव्यों के निर्वहन की, और मौलिक अधिकार की
सिर्फ स्वर्णिम अतीत से ही, भविष्य नहीं बना करता है
वर्तमान  में  उसके लिये, संघर्ष कड़ा करना पड़ता है
सभी शरीक होंगे जब जश्न में , तो उत्साह भी दोगुना होगा
और ईश्वर की सर्वोत्तम रचना होना भी, सार्थक होगा

Saturday, November 20, 2010

मेरा नजरिया

ग़मों की आंच पे आंसू उबालकर देखो
बनेगे रंग किसी पर भी डालकर देखो
तुम्हारे  दिल की  चुभन भी जरूर  कम होगी
किसी के पाँव से कांटा निकाल कर देखो 

डॉ. कुंवर बेचैन